विदर्भ प्रिंट, नागपुर। प.पू. बाबासाहेब आंबेडकर ने सन 1956 को नागपुर में धम्मचक्र परिवर्तन कर नागपुर को ऐतिहासिक धम्मनगरी का रूप दिया है। नागपुर महानगर पालिका ने इस धम्मक्रांति के सम्मानार्थ अंबाझरी तालाब नजदीक निर्सगरम्य स्थल डा. बाबासाहेब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन बनवाया। इस भवन को एमटीडीसी के साथ भूमािफया के साथ अपने व्यवासाय की उद्देश्यपूर्ति के लिए संगनमत कर तोड़ा गया। 20 एकड़ पर भूमि को व्यावसाय के उपयोग के लाने के लिए वहां बना बनाया स्मारक बुलडोजर की मदद से तोड़ा गया। इसका सभी आंबेडकरी विधारधारा को माननेवाले संगठनाओं ने विरोध किया है। इस विरोध के तहत पिछले अनेक दिनों से आंबेडकरी विधाराधारा को माननेवाले सभी प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से विरोध किया जा रहा है। लेकिन एमटीडीसी, एनएमसी व शासन-प्रशासन इस आंदोलन की ओर किसी भी प्रकार से ध्यान नहीं दे रहे हैं। संबंधित विभाग प्रबुद्ध नागरिक व आंबेडकरी समाज का अपमान कर रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए एमटीडीसी व जिलािधकारी कार्यालय पर मोर्चा निकालकर धरना आंदोलन कर , ज्ञापन भी दिया गया है। शहर के अनेक स्थानों पर महिलाओं की टीम की ओर से धरना प्रदर्शन कर इसका विरोध कर रैली निकाली जा रहे हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद जानबूझकर शासन व प्रशासन इस ओर नजदअंदाज कर रहा होने का आरोप डा. बाबासाहब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन कृति समिति की ओर से लगाया जा रहा है।
15 अप्रैल काे अंबाझरी परिसर में मनायी जाएगी जयंती :
डा. बाबासाहब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन कृति समिति की ओर से 15 अप्रैल को बाबासाहब आंबेडकर की जयंती मनायी जाएगी। इसमें शहर की तमाम जनता सहभागी हो रही है। शहर में हर एिरया में 14 अप्रैल को डा. बाबासाहब आंबेडकरजी की जयंती मनायी जाती है। इसलिए कृति समिति ने 15 अप्रैल को जयंती कार्यक्रम लेना का फैसला अंबाझरी परिसर पर में लिया है। परिसर में पहुंचने लिए शहर में प्रसार प्रचार किया जा रहा है।
कृित समिति ने मांग की है :
1, शासन प्रशासन तत्काल यथासंभव उसी 20 एकड़ जमीन पर डा. बाबासाहब आंबेडकर भवन का निर्माण कर उसी परिसर में डा. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक का कार्य होना चािहए
2, डा. बाबासाहब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन का जमींदाेज करने के मामले पर जांच कर तुरंत दोषियों का गिरफ्तार करें
3, डा. बाबासाहब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन की 20 एकड़ जमीन को हड़पनेवाले व वहां पर पर्यटन विकास क्षेत्र घोषित करने की योजना व करार रद्द किया जाए इसी आवाज का बुलंद करने समाज एकत्रित होकर आंदोलन कर रहा है।
प्रमुख राजनीतिक पार्टियां बना रही दूरियां :
डा. बाबासाहब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन बचाओं आंदोलन की मांग को लेकर हो रहे आंदोलन को डा. आंबेडकर की विचारधारा पर काम करने का दावा करनेवाली प्रमुख राजनीितक पार्टी व उनके नेताओं का समर्थन खुले तौर पर नहीं िदखाई दे रहा है। इस आंदोलन में कांग्रेस के प्रदेश महासचिव किशोर गजभिए निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं लेिकन पूर्व पालकमंत्री इस पर अपनी चुप्पी साध कर बैठे हैं। जिसके खिलाफ यह आंदोेलन चल रहा है, वह भी कांग्रेस का प्रदेश स्तर का नेता है। उन्हीं को एमटीडीसी की ओर से डा. बाबासाहब आंबेडकर सांस्कृतिक भवन परिसर की जमीन व्यवसाय के लिए देने का करार हुआ है। इसके अलावा कुछेक महिलाएं कार्यकर्ता भी कांग्रेस की पदाधिकारी रह चुकी है। लेकिन प्रमुख राजनीतिक पार्टी जो बाबासाहब का नाम लेकर देश भर में आंबेडकरी आंदाेलन चलाने का दावा करती है वह पार्टी आज भी इस आंदोलन में पूरी तरह से शािमल नहीं हुई है, यह समझ से परे है। मनपा में अच्छी खासी संख्या होने के बावजूद इस करार का विरोध नहीं करना यह यह भी डा. बाबासाहब के प्रति कितना प्रेमभाव है यह आंबेडकरी जनता को साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। नगरसेवकों की चुप्पी यह सबकुछ बयां कर रही है। हमारे प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि आनेवाले चुनाव में जनता ने इस पर सवाल जवाब करने का मन तो बना ही लिया है।
प्रमुख नेताओं का भी नहीं मिल रहा समर्थन: आंबेडकरी आंदोलन में खुद को प्रखर आंबेडकरवादी कहने की होड़ मचानेवाले नेताओं ने इस आंदोलन से दूरी बना ली है। किसी का कहना है कि उन्हें बुलाया नहीं गया, तो कोई कहता कि हमें कोर कमेटी में नहीं रखा गया। लेिकन असली वजह तो वे ही जानते हैं। इसका जवाब जनता चुनावों के दौरान देगी ऐसा दिखाई दे रहा है। नामी नेताओं का खुली तौर पर समर्थन नहीं मिलने से तरह तरह की बातें चल रही है।
सहभाग : किशोर गजभिए सेवा निवृत्त आईएएस ,डा. धनराज डहाट, बालू घरडे, सुधीर वासे, डा. सरोज आगलावे, पुष्पा बौद्ध,डा. सराेज डांगे, उषा बौद्ध, तक्षशीला वाघधरे, छाया खोब्रागड़े, राहुल परुलकर, उज्वला गणवीर, ज्योति आवले, सुषमा कलकर, सुगंधा खांडेकर, प्रताप गोस्वामी, राजेश गजघाटे, जनार्धन मून, अब्दुल पाशा, डा. अशोक उरकुडे, सिद्धार्थ घरडे के साथ ही समाज के अन्य नागरिक व महिला कार्यकर्ता हमेशा की तरह ही मौजूद रहे।

