Saturday, April 19, 2025
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कन्याओं को गर्भ में ही मारने के पाप को कानून द्वारा समाप्त करने का केंद्र सरकार का प्रयास

नागपुर।  यह गर्व की बात है कि हमारे देश में महिला को लक्ष्मी माना जाता है। लेकिन इस देश में लड़कियों को गर्भ में मारने का पाप भी कई लोग करते हैं। इसलिए केंद्र सरकार इस पाप को पूरी तरह से खत्म करने के लिए 1994 में ‘गर्भाधान पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन रोकथाम) अधिनियम’ लेकर आई। तब से यह कानून लक्ष्मी के रूप में स्त्री-भ्रूण की रक्षा कर रहा है।
     इस कानून के आने से पहले देश में कन्या-भ्रूण हत्या की दर बहुत बढ़ गई थी। कई लोग गर्भधारण के बाद लिंग निर्धारण कर कन्या-भ्रूण को गर्भ में ही मार रहे थे। परिणामस्वरूप देश में लिंग संतुलन बिगड़ गया। महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में काफी कम था। अतः इस राक्षसी मानसिकता को ख़त्म करने के लिए दुर्गामाता के हथियार जैसे कानून की आवश्यकता थी। अपवादों को छोड़कर यह अधिनियम उस आवश्यकता को पूरा करता है। अधिनियम में कई प्रभावशाली प्रावधान शामिल हैं। इस कानून के अनुसार प्रसवपूर्व निदान तकनीक का उपयोग केवल भ्रूण में असामान्यताओं का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, शिशु के लिंग का निर्धारण करने के लिए नहीं, ऐसा करना एक गंभीर अपराध है। कोई भी प्रयोगशाला स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल लिंग निर्धारित करने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी या कोई अन्य परीक्षण नहीं कर सकता है और न ही किसी गर्भवती महिला या उसके रिश्तेदारों को किसी भी तरह से उसके अजन्मे बच्चे का लिंग बताया जा सकता है।
      इस अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है और इस अपराध में समझौते की कोई सुविधा नहीं है। दोषी पाए जाने पर आरोपी को कम से कम तीन से अधिकतम पांच साल की सश्रम कारावास और न्यूनतम 10,000 से अधिकतम 50,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा दोषी डॉक्टरों, आनुवंशिक परामर्श केंद्रों और प्रयोगशालाओं के लाइसेंस रद्द किये जा सकते हैं। 
(  इस आर्टिकल के लेखक एड. सोनिया गजभिए है  )
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