विदर्भ प्रिंट,नागपुर। बौद्धगया बिहार स्थित महाबोधी महाविहार मुक्ति हेतु संपूर्ण देश विदेश के बौद्ध अनुयायियों में आंदोलन शुरू हैं। देश के सभी राज्यों व कई प्रदेशों में वर्तमान में आंदोलन किया जा रहा हैं। बिहार स्थित बौद्धगया वह पावन भूमि हैं जहां तथागत बुद्ध ने आज से 2500 साल पूर्व बोधी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्तकर बुद्धत्व को उपलब्ध हुए थे। कुछ समय बाद उस पावन भूमि पर सम्राट अशोक राजा ने विशाल बुद्ध विहार की स्थापना की थी। कालांतर में भारत में जो धार्मिक उन्माद का जो संघर्ष चला उससे बौद्ध धर्म भारत से विलुप्त हो गया। उस समय सम्राट अशोक द्वारा निर्मित चौरासी हजार स्तूप, शिलालेख, गुफाएं विंध्वस की गई या मिट्टी में दब गई या उसपर जंगल उग आये।
भारत में अंग्रेजों का शासन स्थापित होने के बाद उनके द्वारा विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किया गया। उन्हीं के समय में भारतीय (पुरातात्विक) आर्कियोलॉजिकल सर्वे नामक विभाग बनाकर विभिन्न स्थानों में खुदाई कार्यकर स्तूप, शीलालेख, गुफाएं और ऐसे कई ऐतिहासिक पुरातात्विक स्थान खोजे गए। इसका मुख्य श्रेय उस समय के अंग्रेज अधिकारी मा कनिंघम को जाता हैं। उन्हीं के प्रयासों से बहुत से दब चुके अवशेष प्राप्त होकर भारत की ऐतिहासिक धरोहर/विरासत मिलती गई और इस तरह भारत का वास्तविक इतिहास प्रमाणों सहित प्राप्त होने लगा।
उस ऐतिहासिक धरोहर में बौद्घगया का महाबोधी महाविहार भी था। भारत में उस वक्त बौद्ध धर्म विलुप्त होने से महाबोधी महाविहार पर ब्राह्मण पंडे पुरोहितों का प्रभाव स्थापित हो गया था। उस समय श्रीलंका के बौद्ध आचार्य भिक्षु अनागारिक धर्मपाल ने महाबोधी महाविहार को ब्राह्मणों के कब्जे से मुक्त कराने को लेकर प्रथम बार आंदोलन कर अंग्रेजी शासन से पत्र व्यवहार किया था। उसके बाद जब भारत अंग्रेजी शासन से 1947 में मुक्त होने के बाद तथा 1950 में संविधान लागू होने के पूर्व बुद्धिस्ट टेंपल एक्ट 1949 (B T Act 1949) बना। जिसके अनुसार महाबोधी महाविहार की प्रबंधन कमेटी में चार हिन्दू चार बुद्धिस्ट व उसका अध्यक्ष हिन्दू जिला कलेक्टर रखने का प्रावधान किया गया। इस तरह बौद्धों का महाबोधी महाविहार पर ब्राह्मणों का गैरकानूनी कब्जा हो गया।
इसमें दो प्रकार से गैरकानूनी कार्यवाही हुई हैं। प्रथम तो भारत में 26 नवंबर 1949 को संविधान लागू होने के बाद जितने भी पूर्व के कानून/अधिनियम थे वे सभी स्वतः पूर्णत निरस्त हो गये। दूसरा भारत में जो भी धार्मिक स्थल हैं जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे इत्यादि उनका प्रबंधन उन धर्मों के प्रमुख लोगों के हाथों में मिल गया किंतु महाबोधी महाविहार का संपूर्ण प्रबंधन आज तक बौद्ध समाज के हाथों में नहीं मिला। जो पूर्णतः असंवैधानिक, गैरकानूनी,व अन्य धर्मस्थल पर कब्जा करना हैं।
इन्हीं दो प्रमुख बातों के विरोध में संसारभर का बौद्ध समुदाय शांति से आंदोलन कर रहा हैं। इसी भूमिका को लेकर भिक्षु संघ के नेतृत्व में नागपुर के भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक, उपासिका समुदाय ने 02 अप्रैल 2025 को नागपुर की दीक्षाभूमि से संविधान चौक तक लाखों की संख्या में एकत्र होकर शांतिपूर्ण तरीके से लांग मार्च निकाला। इस शांति मार्च की प्रमुख विशेषता यह रही कि इसमें किसी प्रकार से नारेबाजी नहीं की गई। केवल हाथों में विभिन्न नारों की तख्तियां लेकर अनुशासित ढंग से पैदल मार्च किया गया।
संविधान चौक में पहुंचने के बाद भिक्षुगण का एक शिष्टमंडल भारत के राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन लेकर नागपुर कलेक्टर के कार्यालय में जाकर ज्ञापन दिया। उसके बाद मार्च को विसर्जित किया गया।
रिपोर्टर- सूरज रोडगे ,नागपुर